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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


कुसुम मुंशी प्रेम चंद

मेरे पत्थर के देवता ! कल मसूरी से लौट आयी। लोग कहते हैं, बड़ा स्वास्थ्यवर्धकक और रमणीक स्थान है, होगा। मैं तो एक दिन भी कमरे से नहीं निकली। भग्न-ह्रदयों के लिए संसार सूना है। मैंने रात एक बड़े मजे का सपना देखा। बतलाऊँ; पर क्या फायदा ? न जाने क्यों मैं अब भी मौत से डरती हूँ। आशा का कच्चा धागा मुझे अब भी जीवन से बाँधे हुए है। जीवन-उद्यान के द्वार पर जाकर बिना सैर किये लौट आना कितना हसरतनाक है। अन्दर क्या सुषमा है, क्या आनन्द है। मेरे लिए वह द्वार ही बन्द है। कितनी अभिलाषाओं से विहार का आनन्द उठाने चली थी क़ितनी तैयारियों से पर मेरे पहुँचते ही द्वार बन्द हो गया है।
अच्छा बतलाओ, मैं मर जाऊँगी तो मेरी लाश पर आँसू की दो बूँदें गिराओगे ? जिसकी ज़िन्दगी-भर की जिम्मेदारी ली थी, जिसकी सदैव के लिए बॉह पकड़ी थी, क्या उसके साथ इतनी भी उदारता न करोगे ? मरनेवालों के अपराध सभी क्षमा कर दिया करते हैं। तुम भी क्षमा कर देना। आकर मेरे शव को अपने हाथों से नहलाना, अपने हाथ से सोहाग के सिन्दूर लगाना, अपने हाथ से सोहाग की चूड़ियाँ पहनाना, अपने हाथ से मेरे मुँह में गंगाजल डालना, दो-चार पग कन्धा दे देना, बस, मेरी आत्मा सन्तुष्ट हो जायगी और तुम्हें आशीर्वाद देगी। मैं वचन देती हूँ कि मालिक के दरबार में तुम्हारा यश गाऊँगी। क्या यह भी महॅगा सौदा है ? इतने-से शिष्टाचार से तुम अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हुए जाते हो। आह ! मुझे विश्वास होता कि तुम इतना शिष्टाचार करोगे, तो मैं कितनी खुशी से मौत का स्वागत करती। लेकिन मैं तुम्हारे साथ अन्याय न करूँगी। तुम कितने ही निष्ठुर हो, इतने निर्दयी नहीं हो सकते। मैं जानती हूँ; तुम यह समाचार पाते ही आओगे और शायद एक क्षण के लिए मेरी शोक-मृत्यु पर तुम्हारी आँखें रो पड़ें। कहीं मैं अपने जीवन में वह शुभ अवसर देख सकती! अच्छा, क्या मैं एक प्रश्न पूछ सकती हूँ ? नाराज न होना। क्या मेरी जगह किसी और सौभाग्यवती ने ले ली है ? अगर ऐसा है, तो बधाई ! जरा उसका चित्र मेरे पास भेज देना। मैं उसकी पूजा करूँगी, उसके चरणों पर शीश नवाऊँगी। मैं जिस देवता को प्रसन्न न कर सकी, उसी देवता से उसने वरदान प्राप्त कर लिया। ऐसी सौभागिनी के तो चरण धो-धो पीना चाहिए।
मेरी हार्दिक इच्छा है कि तुम उसके साथ सुखी रहो। यदि मैं उस देवी की कुछ सेवा कर सकती, अपरोक्ष न सही, परोक्ष रूप से ही तुम्हारे कुछ काम आ सकती। अब मुझे केवल उसका शुभ नाम और स्थान बता दो, मैं सिर के बल दौड़ी हुई उसके पास जाऊँगी और कहूँगी देवी, तुम्हारी लौंडी हूँ, इसलिए कि तुम मेरे स्वामी की प्रेमिका हो। मुझे अपने चरणों में शरण दो। मैं तुम्हारे लिए फूलों की सेज बिछाऊँगी, तुम्हारी माँग मोतियों से भरूँगी, तुम्हारी एड़ियों में महावर रचाऊँगी यह मेरी जीवन की साधाना होगी ! यह न समझना कि मैं जलूँगी या कुढूँगी। जलन तब होती है, जब कोई मुझसे मेरी वस्तु छीन रहा हो। जिस वस्तु को अपना समझने का मुझे कभी सौभाग्य न हुआ, उसके लिए मुझे जलन क्यों हो। अभी बहुत कुछ लिखना था; लेकिन डाक्टर साहब आ गये हैं। बेचारा ह्रदयदाह को टी.बी. समझ रहा है।
दु:ख की सतायी हुई,
क़ुसुम

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